अपना लोकल बाजार भारत देश की बढ़ती अर्थव्यवस्था में सभी छोटे-बड़े उद्द्योग और उत्पादन का महत्पूर्ण स्थान है, किसान से लेकर मजदुर और व्यापारी तक के योगदान से देश, राज्य और प्रति व्यक्ति की उन्नति होती है परन्तु 21वीं सदी में जहाँ हम विकसित होने के बड़े आयाम की ओर अग्रसित हो रहे है वहीं हमारे समाज में मध्यम व उससे निचे वर्ग के व्यापारी, दुकानदार और उद्द्योग (कल-कारखानों) पर मजबूत पूंजीवाद का बड़ा असर पड़ता जा रहा है । वर्तमान में देखा जा रहा है कि अनाज, भोजन, कपड़ा, दवा के साथ हमारे जीवन की सभी आवश्यक जरुरत से लेकर सभी सामग्री पर मजबूत पूंजीवाद अर्थात बड़े-बड़े मार्ट व रिटेल स्टोर की पकड़ बन गयी है, जिससे देश की अर्थव्यवस्था में इजाफा जरूर हुआ है परन्तु प्रतिव्यक्ति आय में कमी तथा मध्यमवर्गी और उससे निचे के व्यापारियों का शोषण व उनका व्यापार सिमित हो गया है । बड़े-बड़े रिटेल स्टोर व मार्ट ग्राहक पर अपनी पकड़ बनाने के लिए उपहार व लुभावने योजना बनाते रहते है जिससे ग्राहक पर इनकी पहुंच ज्यादा से ज्यादा बनती जा रही है, जिस कारण मध्यमवर्गी व्यापारी की पहुंच नहीं बन पाती है और ग्राहक(उपभोक्ता) अपने लोकल बाजार (मार्केट) से दूर होते जा रहे है । ग्राहकों (उपभोक्ताओं) को मार्ट व बड़े स्टोर कभी-कभी भ्रस्टाचार का भी सामना करना पड़ता है । अपना लोकल बाजार द्वारा बड़े पूंजीवाद के साथ देश के मध्यम व छोटे कारोबारियों,दुकानदारों की ज्यादा पहुंच अपने लोकल (नजदीकी) ग्राहक तक बन सके साथ ही देश के प्रतिव्यक्ति के आय में वृद्धि हो सके इसके लिए अपना लोकल बाजार एक सहयोगी प्लेटफार्म है । जिससे मध्यम व छोटे कारोबारियों तथा ग्राहक के साथ भी होने वाले भेद-भाव व भ्रस्टाचार समाप्त हो सकेगा, एवं भविष्य में देश की अर्थव्यवस्था बड़े पुंजीवाद पर ही निर्भर नहीं रह जाएगी । जिससे देश के प्रत्येक वर्ग की उन्नति होगी और देश समावेशी विकास के ओर अग्रसर होगा ।
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