इसमें शास्त्रीय संगीत की तरह बंधन नहीं होता है। जो ईश्वर के लिए गाए जाएं उसे भजन गीत कहते हैं। भजन गीत को अच्छा बनाने के लिए लोग शास्त्रीय संगीत का भी उपयोग कर लेते हैं कभी कभी।
भक्ति क्यों करनी चाहिए इसके लिए हम सबसे पहले रुख करते हैं श्रीमद् भगवत गीता का रुख करते हैं। गीता अध्याय 18 श्लोक 65 गीता तथा अध्याय 9 श्लोक 33 में गीता ज्ञान दाता ने कहा है कि हे अर्जुन! मुझ में मनवाला हो, मेरा भक्त बन, मेरा पूजन करने वाला हो, मुझको प्रणाम कर, ऐसा करने से मुझे ही प्राप्त होगा। भक्ति करना इसलिए अनिवार्य क्योंकि प्रभु ने हमें पवित्र सद्ग्रन्थों में भक्ति करने का आदेश दिया है, क्योंकि बिना भक्ति के हमारा मोक्ष संभव नहीं है। गीता अध्याय 8 के दो श्लोकों (गीता अध्याय 8 श्लोक 5, 7) में तो गीता ज्ञान दाता ने अपनी भक्ति करने को कहा है तथा गीता अध्याय 8 के ही श्लोक 8, 9, 10 में गीता ज्ञान दाता ने अपने से श्रेष्ठ परमेश्वर की भक्ति करने को कहा है तथा उस परमेश्वर की भक्ति करने से उसी (परम्) श्रेष्ठ (दिव्यम्) अलौकिक (पुरूषम्) पुरूष को अर्थात् परमेश्वर को प्राप्त होगा। इसलिए भक्ति करना अनिवार्य है। जैसे रोग नाश के लिए औषधि का सेवन करना अनिवार्य है, ऐसे ही आत्म-कल्याण के लिए भक्ति करना अनिवार्य है।
भक्ति क्यों करनी चाहिए इसके लिए हम सबसे पहले रुख करते हैं श्रीमद् भगवत गीता का रुख करते हैं। गीता अध्याय 18 श्लोक 65 गीता तथा अध्याय 9 श्लोक 33 में गीता ज्ञान दाता ने कहा है कि हे अर्जुन! मुझ में मनवाला हो, मेरा भक्त बन, मेरा पूजन करने वाला हो, मुझको प्रणाम कर, ऐसा करने से मुझे ही प्राप्त होगा। भक्ति करना इसलिए अनिवार्य क्योंकि प्रभु ने हमें पवित्र सद्ग्रन्थों में भक्ति करने का आदेश दिया है, क्योंकि बिना भक्ति के हमारा मोक्ष संभव नहीं है। गीता अध्याय 8 के दो श्लोकों (गीता अध्याय 8 श्लोक 5, 7) में तो गीता ज्ञान दाता ने अपनी भक्ति करने को कहा है तथा गीता अध्याय 8 के ही श्लोक 8, 9, 10 में गीता ज्ञान दाता ने अपने से श्रेष्ठ परमेश्वर की भक्ति करने को कहा है तथा उस परमेश्वर की भक्ति करने से उसी (परम्) श्रेष्ठ (दिव्यम्) अलौकिक (पुरूषम्) पुरूष को अर्थात् परमेश्वर को प्राप्त होगा। इसलिए भक्ति करना अनिवार्य है। जैसे रोग नाश के लिए औषधि का सेवन करना अनिवार्य है, ऐसे ही आत्म-कल्याण के लिए भक्ति करना अनिवार्य है।
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